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कहानी भारत के एक ऐसे जज , जिसे दी गई थी फांसी की सजा,

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फांसी मतलब सजा-ए-मौत आप सब ने जीवन में देखा या सुना होगा जज को फांसी का आर्डर देते हुए मगर क्या आपको पता है भारत की इतिहास में एक बार ऐसा भी हुआ जब स्वयं जज को फांसी के तख्ते पर लटकाया गया यह कहानी इतनी खौफनाक है सुनकर आपके रोंगटे खड़े हो जाएंगे |

यह कहानी शुरू होती है 1970 में जब उपेंद्र नाथ राजखोवा जी रिटायर हो चुके थे उन्होंने अपना सरकारी बंगला खाली नहीं किया था इसी बीच उनकी तीन बेटियां और उनकी पत्नी अचानक से गायब हो गई थी लोगों ने जब पूछताछ  कि आप की बेटियां और पत्नी कहां गई वह कुछ ना कुछ बहाना बना देते थे और इसी बीच कुछ समय बाद उन्होंने अपना बंगला अप्रैल 1970 में खाली करके चले गए और उनकी जगह एक दूसरे जज आ गए।  



सबसे हैरान करने वाली बात ये थी कि राजखोवा कहां गए, इसके बारे में किसी को भी पता नहीं था। चूंकि राजखोवा के साले यानी उनके पत्नी के भाई पुलिस में थे, उन्हें कहीं से पता चला कि राजखोवा सिलीगुड़ी के एक होटल में कई दिनों से ठहरे हुए हैं। इसके बाद वह कुछ पुलिसकर्मियों के साथ होटल में गए और उनसे मिले और अपनी बहन और भांजियों के बारे में पूछा। इसपर राजखोवा ने तरह-तरह के बहाने बनाए। इस बीच उन्होंने कमरे के अंदर ही आत्महत्या करने की भी कोशिश की, जिसके बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया।

बाद में उन्होंने पुलिस के सामने अपना बयान देते हुए कहा कि मैंने ही अपनी तीनों बेटियां और पत्नी को अपने सरकारी बंगले में हत्या कर के दफना दिया है|
इसके बाद लगभग 1 साल तक उनका केस चला और अदालत ने उन्हें फांसी की सजा सुनाई इसके बाद उन्होंने हाई कोर्ट की तरफ अपील की हाई कोर्ट ने भी अपना फैसला बदला नहीं के बाद उपेंद्र नाथ ने सुप्रीम कोर्ट मैं अपील की सुप्रीम कोर्ट ने भी अपना फैसला नहीं बदला कहा जाता है कि राजखोआ ने दया याचिका के लिए राष्ट्रपति से भी अपील की थी, लेकिन उन्होंने भी उसकी अपील को ठुकरा दिया था। ऐसा लगभग 6 से 7 साल तक चलता रहा

पर आखिर में14 फरवरी, 1976 को जोरहट जेल में पूर्व जज उपेंद्र नाथ राजखोवा को उनकी पत्नी और तीन बेटियों की हत्या के जुर्म में फांसी दे दी गई। लेकिन इसमें सबसे बड़ी बात है कि राजखोवा ने अपनी ही पत्नी और बेटियों की हत्या क्यों की थी, इसके बारे में उन्होंने कभी किसी को नहीं बताया। यह अभी तक एक राज ही बना हुआ है।

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